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________________ anupAINMEAme /ARGEma/sto/ARDAadimanavi || मंमयो हो कोइ नवो विनाण ॥ सदा प्र० ॥(श्री) पार्श्वचंद्रसूरि वीनवे, मुज नवोजव हो जिन-|| | आण प्रमाण ॥ सदा प्र० ॥ ए ॥ इति श्रीजिनाझापालनस्वाध्यायः॥ अथ श्री एषणाशतक प्रकरणम् ॥ ॥हा॥ श्री जिनसासन समवझे, अवर न सासन कोय।। कहो किम हिरागर तुले, जग लवणागर | होय ॥१॥ ते पाम त्रिहुं तत्व धुर, गुरुनो करो विचार ॥ ते विण परख्ये नवि लहिये, देव धर्म | व्यवहार ॥२॥ आगम कस पहुंचे नहीं, जे जे दीसे जगमांहि ॥ वीरतीर्थ ज्यां ने बतां, | एह वचन आराहि ॥३॥ ते दिन क्यारे आवशे, ज्यारे बंदिस्युं साध ॥ तेहनी साख खमा| वस्युं, आपणला अपराध ॥४॥ शुद्ध जिनागम सन्निसुं, लहिस्युं निर्मळ ज्ञान ॥ स्वहस्ते || यदि प्रतिमानस्यु, ते दिन गणीशुं प्रधान ॥५॥ पंच महाव्रत आदरी, थावे प्रवचन मात ॥ | तेह विशे जयणा करूं, जे आगमे विख्यात ॥६॥पूरो संयम नवि पले, श्णे ऽसम काल ॥ है| जेह जतन मे नहीं, तसु प्रणाम त्रिकाल ॥७॥ वळी विशेष एसणा, शुद्धि विशुद्ध अहार ॥ || Navppearestawe/Ame/mparanevaanaananpranam
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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