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रजत कथीर, काच रतन ए पृथवी सरीर, धीर नीरु नर नारी ॥ १५॥ अंब निब तरुवरनी जात, काळ विशेष दिवस ने रात, जाति कनक जे फुल, दूध नाम गोअक्क सरीखो॥ए सहु ए समवम जश् देखो, लेखो गिरि गिरि तुल ॥१६॥ श्स्युं जाणी गणि शत्रुजय तीर्थ, णगिर आव। सिद्धा समर्थ, अर्थ सिद्धि जे पामी ॥ सिद्धतणे गुण रागे रमीए, माणसनो नव एले न गमीये, नमिये ते सिर नामी॥१७॥ बंमी राजरिद्धिनी ममता, इंडीयने दमी आदरी समता, करता विधिए विहार ॥ नेम जिनेश्वर सांनळी सिद्धगति, चिंतवि धिक् धिक् कर्मतणी गति ॥ निंदिय
अथिर संसार ॥ १७ ॥ धरि वैराग राग मति परिहरी, पांच पांमत्र चड्या विमलगिरि, शिव| पुरी पाम्या राज ॥ श्ण गिरि सहस साधु परिवरीयो, थावच्चो गुणमाणिक नरीयो, तरीयो सारी काज, ॥ १५ ॥ सहस सहित इह शुक परिव्राजक, तेहतणा गुण जाणे सहु जग, जगमग ते जस लीधो॥पूर प्रमादे पापह चेलग, विनय क्षमा देखी ऋषि सेलग, पंथक गुणे प्रतिबूधो ॥ ३० ॥ पंच सयास्युं शत्रुजे आव्यो, कर्मतणो मळ दूर खपाव्यो, पाम्यो शिवपुर गण ॥
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