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वन परिमळे जळ घणेरा, नहीं मन विना मानसहंस केरा ॥ जगे नवियण चित्त आणंदकार, || तीम तीर्थमांहि शेज सार ॥ ढाळ ॥७॥ पृथवी मंमण तीर्थ घणा ए, 2 जण जण मण श्तो॥ शत्रुजय समवम अवर मे, कोइ न तीरथ दीवतो।गावोण गावो गावो आपणो ए, ए मनमाणो ब्रांत तो॥जेद गुणना पारखीय, ते परखी गुण लिंत तो ॥गावोगाए॥ जिण दीठे गुणवंतना ए, गुण समरीये अनेक तो ॥ लेखतणे अहिनाण तिहां, मन आणीये वीवेक तो।गा॥१०॥ साधारण | नावे नएयो ए, पग पग सिद्ध अनंत तो॥ शत्रुजय जेम सविशेष तिहां, नहु लाने गुणवंत तो ||गा॥११॥ निरतो ज्ञान न उपजे ए, ज्यां लगे नर उदमस्थ तो ॥ त्यां मन थालंबन क्रियाए, | अक्षर प्रतिमा तिब तो ॥ गावो० ॥१॥ सहि जिनसासन जेहनो ए, ए उपर नवि राग तो॥ ते है मिथ्याति जाणीए ए, के केवली वैराग तो गावोग॥१३॥जे पण राग नलो नथी ए, थाये तो जिन | है मत था तो॥ सिफ राग मन सांजरे ए, वळी वळी तीर्थराज तो ॥गावोगा ढाल ॥१॥ शत्रुजय | | गिरि गिरी अवर समाणो, एहवी मतिनो नाव म ाणो ॥ जाणे हिये विचारी सोवन पीतळ है
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