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________________ VAIN रास. ॥१२॥ SIDSB PANDIVASIVANVARJAsuesas/AMVA || परनी निंदा (ए) ते सहु जायके ॥ श्रुतनो० ॥ १५ ॥ वलीय विशेषे जिनतणो, मने माणज्यो मोह लगारके ॥ तेहनो अवरण बोलतां, चोथे अंगे सुणिय विचारके ॥ श्रुतनो० ॥ २०॥ जिन ||| प्रतिमानी हेलणा, सूत्र वचन जिनवर हिलायके ॥ पंचम अंगे विमासज्यो, घासायण तसु || णिपरे थायके ॥ श्रुतनो० ॥१॥ वीतराग जिणवर कह्यो, प्रतिमाने जोज्यो अधिकारके ॥ बीजे || तिम त्रीजे वली, अंगे उगे लेहु विचारके ॥ श्रुतनो ॥ १२॥ पंचम उढे अंगे नएयो, सांजली हीयमे आण विवेकके ॥ मं-बोलज्यो उपरावग, साखी श्हां ग्रंथ अनेकके ॥ श्रुतनो॥३॥ जगवर अंगे नांखीयो, वीसमे सय नवमे उद्देशके ॥ बार गम प्रतिमा तणा, वंदेवा श्री साधु | विशेषके ॥ श्रुतनो० ॥ २५ ॥ आवे गमे शाश्वती, असाश्वति प्रतिमा चिहु गमके ॥ वंदे ते | चारण यती, श्म बोल्या श्री सोहमस्वाम के ॥ श्रुतनो० ॥ २५॥ दशमे अंगे आठमे, अध्ययने जिनप्रतिमा काजके ॥ मुनिवर यावच करे, तेहने नास्ति नहीं जिनराजके ॥श्रुतनो० ॥ २६ ॥ ॥१२॥ पंचम आवश्यक करे, वीरजिणंद चनविद संघके॥ उन्नयकाले किरिया नणी, प्रतिमा वंदन पूजन DVAIBANSWARE VONVONDVANDANG
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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