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________________ रास. शारास 1॥१२७॥ Meanwartavasnsootowata/statvasavaesaaraavat है किहां बगलमो, किहां नूमिपति किहां ले रंकके॥ किहां उज्जल किहां मेलमो, किहां सरसो कि|| हां वंक निसंक के ॥ श्रुतनो० ॥ ४॥ किहां हयवर किहां रासनो, किहां मयगल किहां महिष विचारके ॥ किहां रायण किहां रींगणी, किहां मजन किहां तरवो पारके ॥ श्रुतनो० ॥५॥ तिम केवली उदमस्थने, वचने अंतर जाणो जाण के ॥ केवलि नाख्यो ते सही, तेहने मिलतो सर्व प्रमाण के ॥ श्रुतनो० ॥ ६॥ सूत्र सूत्र मुखे सहु कहे, तिहां पण गिर सरसवह प्रमाणके ॥ केलवणहार यांतरो ॥ तिण थाये विस अमीय समाणके ॥ श्रुतनो० ॥७॥ जिम किणही कागले लख्यो, पुत्र चोरतो हुँ पण चोरके ॥ वांचणहारे वांचीयो, तिम जिम लेखक मंग कगेर के ॥ श्रुतनो० ॥॥ धणिये तिणपर वांचीयो, निणपर दुवोराजपसायके ॥ केअवतां श्म आंतरो, दुलहो| लहितां निरतो नावके ॥ श्रुतनो० ॥ ए। परंपरा जे आवीयो, गुरुमुख सनिबज्यो परमथ्यके ॥ थागम वांचे ते खरो, ते गुरुजन तारेवा समथ्थके ॥ श्रुतनो ॥१०॥ दया वखाणी तेहनी, जे | | निरति राखे जिनवर थाणके ॥ आण दया अंतर घणो, करज्यो ए तुमे वचन प्रमाणके ॥ NUNNANVAINING
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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