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थी.थाकाशव्य व्यथकी नित्य पर्यायथकी उत्पत्ति नाशरूप बे. ॥ इति श्रीमन्नागपुरीयवृहत्तपागवाधिराजयुगप्रधान श्रीपार्श्वचन्द्रसूरीश्वरकृतं
षट्रव्यविचाररूपप्रश्नोत्तरंसंपूर्णम् ॥
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॥ अथश्रीजिनप्रतिमास्थापनारासः॥ ॥ ॥ सार वचन जिन नाखीओ, श्ण जामति नहीं बीजो कोय के ॥ हीये विमासी जोयज्यो, सोवन पीतल सम किम होय के ॥ श्रुतनो पक्ष म मेलज्यो ॥१॥ एहजे नाई सीख | रसाल के आदर करीने मानज्यो । नयगम नंग गुण सुविसालके, एकमने आराधज्यो ॥ मो-| ह मिथ्यात विचे वट पाम्के, उपसम समकित जीपज्यो ॥ मुगति पुर्गनी उपरे मालके, सुखे चमी सुख पामज्यो ॥ श्रुतनो ॥२॥ कल्प साल किहां केरमो, किहां नूमितल किहां सुरलोक के ॥ किहां चिंतामणी कांकरो, सायर बीबर सरस म जोयके ॥ श्रुतनो० ॥ ३॥ राजहंस
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