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________________ ॥ ५० ॥ त्रस बादर पज्जत्त, जस यादेय, सुनग उच्चगोय जिननामस्युए । पंचेंद्रिय जाति, साता साताए । मांदेल एकज वामइयुंए । तेरह पयो एह, चन्दमे गुणठाणे, चरम समय सघजी पीए । अथवा मी वार, चरम समये खरे, नर आणुश्र्वी त्रिणुलुपीए ॥ ५१ ॥ तुम्ह दरसण स्वामी, कर्म तवसे । नवे नवे रोल या जीत्रकोए । जीव चनराशी लाख, मांहे दुःख सुख, पाया मोह नमे नमयोए । सद्गुरु तो पसाये, तुम्ह सासन लह्यो । कर्म तयो दवे जय टब्याए | दूर थया सवि दुःख, शुभ मति संपनी, समकित सुरतरु मुजफल्योए ॥ ५२ ॥ ॥ कलश ॥ इम चन्द ठाणे पथमी विवरण नाम मात्रे संयुण्यो । सूरीन्द्र श्री पार्श्व चंद्र शिष्ये श्री समरचंद्र जेम मुण्यो । जे भए मात्रे मने घ्यावे कर्मपथमी खय करे ॥ ते लदे केवल विमल सुखकर ंले शिवरमणी वरे ॥ ५३ ॥ ॥ इतिश्री चतुर्दशगुणस्थान कबंधनद यउदीरणा सत्ता कर्मप्रकृतिविचारगर्भित श्रीमहावीर जिनस्त वन रूप त्रिपंचाशिका रचिता समरचंद्रसूरिणा समाप्ता ॥ शुनं जयतु ॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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