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________________ स्व०पं० स्त०५० ॥११८॥ Pawatsaaavaasaansaastavaasanawara जसनाम ज्ञानावरण पणयंतराश्यं ॥ पंच श्म सवि सोल पयमी बंध रह्यो संपराश्यं ॥१७॥ वस्तु ॥ खीणमोहे खीणमोहे एकनो बंध, तेरमे थानके एकनो, बंध सातावेदनी नणीजे ॥ चउदमे थानक बंध नहु कर्म रहित सिरि सिद्ध थुणी जे॥ हवे हुँ उदय विचारणा, एकसोने बावीस ॥ समकित मिश्र सहित नएया, सामान्ये स जगीस ॥२७॥ ॥ ढाल ॥ जंबूस्वामीना विवाहलो ।। चालती ॥ पेहेले गणे एकसो सतरतणो, पयमी पंचनो उद मत नको. समकित मिश्रने आहारक पुगं, तित्थंकर नाम मिले नह जुगं ॥त्रटक॥ गणगणे बीजे पयमि उदए एकसो ग्यारु ए । सुरिकम अपऊत यातप मिथ्या साधारण मन धारु ए । नरकानुपुत्री उहय पयमी सतरमांही उबी करी । हवे मिश्र एकसो उदय बारे काढी मिश्र मांहे धरी ॥श्ए॥ चालती ॥ ते श्म च्यारे अनंतानु बंधीया । थावर नामकर्म गबिति | चरिंदिया। सुरनर तिर्यग आनुपुवी तियं । समकितठाणे चउ अधिक सयं ॥त्रुटक॥ सत एक || मांहे पंच घाली मिश्र एक उसारियें । समकित च्यारे आनुपुवी नरकादिकनीधारिये ॥ प्रकृति water ॥१२॥ &
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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