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पंचम गण सत्यासी सतर पयमी जणी करो। चिनुत्तरसो मांदेथीदेशविरति उदउँ मन धरो॥३॥ चालती॥ अप्रत्याख्यानी क्रोधादिक चल । देवगति देवाणुपुत्व। देव बाजयं । विक्रिय तनुवली विक्रिय उपांग ए । नेरश्यगतिने आनुपुवी आजए ॥ त्रुटक ॥ तिरि मणुअपुत्वी अयस दुर्लग अनादेय ए सविटले । प्रमत्ते उदय एकासि आठे काढी दोयमांहि मिले। उद्योत नीयंगोय तिरिगति आज प्रत्याख्यान चोकमी। ए काढी श्रादारक तणु उपांग पुन्नी पयमी मांहि जमी ॥३१॥ चालती॥ अप्रमत्त गणे उदय बिहुत्तरी। एकाशीथी पंच पानी करीनिमानिमा प्रचलाप्रचलय। थीणद्धीने आहारक दोय॥त्रुटक॥थाम्मे गणे उदय बिहुत्तरी। च्यार काढो तेहनी। पयमी अर्द्ध नाराच कीलिका बेवट समकित मोहनी। नवमे गणे डासहि जाणो । हास्य रतिभरति नयं ।
शोक दुगंडा बह्य काढी बहुत्तरि मांहिथी बसव्यं ॥३॥चालती॥ दसमे गणे साठ प्रकृति कही। । स्त्री पुं नपुंसक वेद उदय नहीं । क्रोध मान माया संजलनातियं । ए बह जणी बासहिथी कियं ।।
त्रुटक ॥ ग्यारमे गुणगणे संजलनो लोन तेह नही। साथी एक एह काढि उदय गुणसहि
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