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________________ IN Twitrastaw/m Mantrevasanassacrames/puavarNIN चालती॥ देवगति देवरे आनुपूवी पंचिंदिपणो, विहायगतिरे सुन्न त्रस बादर वलीलणो। पजत्तथिररे पत्तेय सुन्नग सुत्न सुस्वरं, आहारकरे विक्रय तेजस कम्मण मन धरं ॥त्रुटकाविक्रियाहारक उपांग दोई आदेय समचनरंसए, संगण निर्माण तिबनाम वर्णचनक बवीत ए, अगुरुलघु उपघात पराघात जसास इणपरे त्रीस ए ॥ आठमे श्म बीत नवमे बंध होय बावीस ए ॥२५॥ चालती ॥ नवमे गुण थानकेरे नाग वली पंचयकरे, तिहां पेहेलेरे नागे बाविस धाररे ॥ तिहां चन टालीरे हास र जय कुछए, बीजें नागेंरे पुरुषविणु ३ग वीसए ॥टक ॥ वीसबंध तश्य नागें क्रोधविणु ते जाणीयें, तुरीय नागें मान टाली ओगणीस एम संजारी ॥ पंचम नागें विणुमाया बढारनो बंध श्ह नएयो, गुणगण दशमें लोन टाली बंध सत्तरनो सुंण्यों ॥२६॥ गुम दशमेरे नाम सुहम संपराश्य, तिहां पयमीरे सत्तर बंधह उवदेशियं ॥ चन दंशणरे साता उच्च जस श्मलही, नाण विग्धंरे दश मिली समग्ग ते कही ॥ त्रुटक ॥ ग्यारमे एक पयमी बंधे सातावेदनी जिन कहे, आवरण चढ चरकु अचस्कु उही केवल बंध दशमे रहे ॥ उच गोय D /Napa
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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