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NAVARAN SANDINA
| कहे जिनराय ॥ एकसो त्रिमूत्तर नाम प्रकृति सतसहिनो बंध ॥ जेह नणी बत्रीत प्रकृति सम| कालिन बंध ॥बंधन पन्नर संघात पणवीस शरीरह मांहि॥वर्णगंधरस फरसनी सोलनो बंध प्रवाही | | ॥ १५ ॥ वस्तु ॥ अठ्ठकम्मद अट्ठकम्मह बंधना हेतु कहीशु सघला जूजुआ सुगुरु वचन मनमाहि धारिय ॥ नाण दसण आवर्ण दोय पो थाय जिय कर्म नारिय ॥प्रत्यनीक निन्दवपणे, जपघाते प्रदेष ॥ अंतराय नणतां करे बंध दो कर्म अशेष ॥ १३ ॥ सातवेदन सातवेदन बंध गुरु नक्ति ॥ क्षमा दयावत पालतां असुन योग क्रोधादि टाले । अशासबंध विपरीतथी थाय दया दिक जे न पाले । उनमारगनी परूवणा करे मारगनो नाश । पमणीय जिनमनि संघचे चेश्य
व्य विणास ॥ १४॥ पणलक्षण पणलक्षण मोहनी बंध । दसण चारित्र मोहनी कषाय सोल नवनोकषाये । विषय पंच परवश थको बंध करे एणे उपाये ॥ नरक बाउ आरंन महा बंधे परिग्रह जेय । पंचेंजी वध पल नक्षण करे बंध जिय तेय ॥ १५ ॥ नियमिमाया नियमिमाया | अलिय जंपे। अधिको लिये थोडो दिये तिरिय आन ते जीव बंधे । प्रकृति ना प्रकृतिये
RATRIORAMR/PranamVARAMR/STA/ARANEVAANEVER