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________________ स्त०५० स्त. ११२ Mmaaamanaraswapasvaaoranpareranatertaemyste | कार्मण, तेजसमिश्र ए चार ॥ औदारिक विक्रियाहारक मख्या, कार्मण त्रण विचार ॥॥ श्रौ- दारिक तेजस कमण, तिमसे विक्रियाहारक श्म ॥ पन्नर बंधण शणिपरे, पंच संघातन तनु जिम। वज्रऋषननाराच, ऋषननाराच नाराच ॥ अछनाराच कीलिका वह उसाच ॥ सम चरंग निग्गोह, सादि कुबज वामन हुंम एह ॥ संगण वर्ण सीत कृष्ण, नील पीत रक्त न संदेह ॥ए॥ गंध सुगंध उगंध, सुन्नि रस पंचविचारो॥ तित्त कय कसाय, अंबिल मधुर संन्नारो॥ गुरु लघु मृफु ने कठिन; शीत उन्हा सिणि बुख्ख ॥ फास निरय तिरि सुर, मनुष्य आनुपूवी चन पुख्ख ॥ | विहाय गति उय सुन्न असुन, उसास आतप पराघात ॥ उद्योत अगुरुलघु तित्थंकर, नाम नि मर्माण उपघात ॥ १०॥ त्रस बादर पजत्त, पत्तेय थिर शुन वली सुनगं॥सुसर अने आदेय यश | एणीपेरे त्रस दसगं॥थावर सुहुम अपज नाम साधारण अथिर॥असुन दुनगवली दुसर अनादेय अजस दस ए थिर ॥ नामकर्मनी एकशत त्रण अधिक चित्ते धारि, गोत्रकर्मनी दोय प्रकृति उच्चनीच सुविचारि ॥११॥ दान लान नोगोपन्नोग वीरिय अंतराय ॥ अहावन चन सर्व प्रकृति एम vacasadeepeanupaneertaemonetAprक ॥१
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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