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________________ NNEVANI/S a vavoiewerswatNANDA ए केहो श्रावक संबंध ॥१७॥ पूजये सवि अवगुण थापिया, वाचक दोष जगमे वापिया ॥ण कारण नागिल पॉरखी, करहु परीख तेण सारिखी ॥१॥ उत्कृष्ट चारित्रे अवेक, लगे पहोता वे साधु अनेक ॥ विणु समकित आराधक नहीं; नव अनंत ते रुलश्ये सही ॥१॥ समकित सहित एक दिन पालि, संयम सकल कर्ममा टालि ॥ गयसुकुमाल प्रमुख शिवगम, पहोता फल तसु पाय प्रणाम ॥२०॥ श्णपरे शुद्ध प्रकाशक साध, व्यवहारे तेहज गुरु लाध ॥ (श्री) पार्श्वचंड एम कहे विचार, ते वंदी पामो नव पार ॥१॥ इतिश्रीपार्श्वचन्द्रसूरिविरचितगुरुपरीक्षास्वाध्यायः ॥ श्रीचतुर्दशगुणस्थानककर्मप्रकृतिविचारगर्जित श्रीमहावीरजिनेन्द्र स्तवनत्रिपंचाशिका. श्री गुरुन्यो नमः॥ वस्तुबंद ॥ सयल गुणनिधि सयल गुणनिधि वीरजिणनाह, तसु पयप्रणमी हनावशु, गुणस्थानक चदशनणेस्युं ॥ जिण जिण थानक जेटली कर्म प्रकृति तेती थुणशं ॥ rose/aI/AAVasavitaantarprahar avatANDVARANASIAwetawe
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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