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________________ स्त०५० CARDARuTECAMEReapwoomenswammanueasur/ADurvaran अ तेने घरबार, जीव न सूझे घण अंधयार ॥ ते देखी एक पागे वल्यो, साधु सुगुरुने पदे ते || मल्यो ॥ए ॥ बीजो व्यवहारे तेह साध, श्राव्यो पण लाग्यो अपराध ॥ प्रमादवश पूजयो ते स्त०५० तिहां, उत्तम जूगे बोले किहां ॥१०॥ श्रापण दोष नाखीने वक्ष्यो, ते वाद्यो मन गुरु अटकल्यो॥ एम गुरु परखणे सहुये त्रहे, निरता गुरु को वीरलो लहे ॥ ११॥ शुद्ध प्रकाशक गुण आगार, समकित सहित धरे आचार॥ गुरु परखो नागिलनी परे, शिव पामो जिम वसता घरे॥१शा नागील वमो सुमति लघु नाय, कर्म उदे आव्यो अंतराय ॥ तेने बले ते निर्धन थया, गुरु परखण परदेशे गया ॥ १३॥ महानिशिथे एनो विस्तार, जाणी करवो हिये विचार ॥ सुमतिक्रिया परखी एकली, विणुसमकित तेवी नहु नली ॥१५॥ नागिले परख्या दसण नाण, जिणे गुरुपदवी | थाये प्रमाण ॥ तिणविणु संयम कर्यो असार, अगणि मसाण जेम सविकार ॥१५॥ जेहने लागे | बहु अपराध, ते कहीये संवेगी साध ॥ तेहथी ऊण घणा श्ह तणा; नागिल बोल्या दूषण घणा ॥११३॥ ॥ १६ ॥ निंदक मुनिजननो ते नहीं, अल्पदोषि बहु दूषण ग्रह। ॥ कह्यो नहीं चारित्रनो गंध, EVANAGeetacamavasapARVADER/e e /easonsumerotara
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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