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________________ करीये ते कहे बे-शलाकापल्य मावे हाथे उपामी अनवस्थित पल्यने बेले सरसवे आक्रांत द्वीप अथवा समुद्र ते अगले एक सरसव द्वीपे एक समुद्रे प्रक्षेपतां जेटले ते पत्यनिःशेष वालो थाय तवारे प्रतिशलाका मांहे एक प्रतिशलाका प्रदेपीये शलाकापल्य स्थानके थापीये, पी अवस्थित पल्य उपामी शलाका पत्यने सरसवे जेटला द्वीप समुद्र याक्रम्या बे, त्यां आगल एक सरसव द्वीपे एक समुझे घालतां जे वारे ते सर्वथापि वालो थाय तेवारे एक संरसव शलाकापल्य मां मुकीये, वली तेटले प्रमाणे अनवस्थित पस्य सरसवे जरी तेमज एक द्वीप एक समुद्रे सरसव मूकतां अकेको सरसव शलाकापल्यमां मूकतां, जेवारे ते बीजी वार शला कापल्य शिखा सहित राय वारे अनवस्थित पल्य नर्योज मुकीये, शलाकापल्य वली उपामी एकेक सरसव द्वीप समुझे मुकतां जेवारे ते निःशेष वालो थाय तेवारे प्रतिशलाकापल्य मांहे बीजी प्रतिशलाका मूकीये, पढी अनवस्थित पल्य उपामी वली द्वीप समुझे एकेको सरसव मूकतां वली शलाकामांदे एकेकी शलाका मूकतां जेवारे संपूर्ण राय, तेवार पढी शलाकापल्य उपामी,
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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