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________________ म० ॥१०॥ vapsasam/domaaDare/areeo20sm/Amaee mava जाणी एक सरसव छीपे एक सरसव समुद्रे घालतां घालतां ते जेवारे पूरो थाय जेणे श्रीपे श्र- | थवा जेणे समुद्रे, त्यां तेटले प्रमाणे आदिथकी प्रारंनी अनवस्थित पल्य बीजी वार कल्पिये, वली तेमज एक छीपे समुझे सरसव घालतां घालतां जेवारे पूरो थाय तेवारे एक शलाका पल्यमां घालीये, ते अनवस्थित प्याला मांहेलो नही, अनेरो सरस घालीये एक कहे अनवस्थित पाला मांहेलोज घालीये, अहीं तत्व केवली जाणे. श्हां बीजीवार अनवस्थित पख्य नीठवे एक सरसव शलाका पक्ष्यमां घालीये ते केम? पेहेलीवारने अनव| स्थित पक्ष्ये नीवव्येंज कांश न घालीए ? एवे प्रश्ने उत्तर कहे जे. जेह नणी अनवस्थित पक्ष्यनी | शलाकाए शलाका पत्ये जरवो कह्यो ते कारणे पेहेलो अनवस्थित पल्य न कहीये. बोजी वारनो आदि द सघला अनवस्थित पक्ष्य कहेवाय, एम जाणी संदेह टालवो. एम अनवस्थित पक्ष्य |नरतां गलबतां अकेंकी शलाकाये घालतां घालतां शलाकापल्य शिखा सहित एवो नराय, जेवो |||२०१५ | के उपर एक सरसव न माय एटले अनवस्थित शलाकापक्ष्य बेबे नर्या दीसे. ते वार पनी झुं NEW/DDDDDDDDDDDDDept
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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