SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 ग० म० ॥१०॥ MVDODaom/ o09/000 CRACETAMITRADI एकेक सरसव छीप समुद्रे मूकतां उलवाय ते वारे एक सरसव प्रतिशलाका पल्यमांहे घालतां| त्यांलगी अनवस्थित पल्य शलाका पल्यने ठालववेनरवे प्रतिशलाका पक्ष्यमांहे एकेका सरस-1 | वने मूकतां लगी करीये. ज्यां लगी शलाका पक्ष्य, प्रतिशलाका पक्ष्य अनवस्थित पल्य त्रणे | जराय. तेवार पली शलाका पल्य अनवस्थितपणे नराय तेवार पली प्रतिशलाका पक्ष्य उपामीये, | ज्यां लगी छीप समुख नीठया डे त्यां आगले एक एक सरसव द्वीपे समुझे मूकीये, जेटलीवारे है | निःशेष गलो थाय तेटली वार महाशलाका पट्ये एकेको सरसव मूकीये, पडी शलाकापल्य | उपामी प्रतिकलाका पक्ष्यगत चरम सरसवे आक्रम्या द्वीप समुन आगले एकेक सरसव द्वीप | समुझे मुकतां गलो थाय तेवारे एक सरसव प्रतिशलाका पक्ष्यमांहे मूकीये, पली अनवस्थित | पढ्य उपामी शलाका पक्ष्यगत चरम सरसवाक्रांत द्वीप समुद्र विषे, एकेको सरसव द्वीप समुझे | मूकतां जेटले उलवाय तेटले एक सरसव शलाका पल्ये मूकीये, एणीपरे अनवस्थित पल्य जरतां | गलवतां शलाकापल्य जरीये. वली तेमज अनुक्रमे जरतां गलबतां त्यां करीए के ज्यां चार | TRADavarayan p/amarapova@ampaNDas १०२
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy