________________
संवत्सरी पंचमें जल्यो, दिये विमासि जोयजी ॥ जवियण ॥ १६ ॥ दवे पकिम जिम कहुँ, काउस्सग्ग निरयुक्तिजी | काउस्सग्ग चार त्रण वांदा, देवसी राई युक्तिजी ॥ जवियण ॥ १७ ॥ काउस्सा इक अतिचारनो, करी वंदा गुरुपायजी ॥ आलोवीने परिक्रमे, वंदण खामण जायजी ॥ जविय ॥ १८ ॥ चारित्र दंशण नापनी, तिहुं काजस्सग्गें शुद्धिजी ॥ करिय ने गुरुवांदणुं, | देतां आवश्यक शुद्धजी ॥ जविय ॥ १५ ॥ राई परिक्रमणे कर्त्तुं पहिलां चरणाचारजी ॥ बीजो दंसण शुद्धिनों, त्रीजो ज्ञानाचारजी ॥ जवियय ॥ २० ॥ तिहां अतिचार चिंतवी, पारी वांदण देइजी || लोइने परिक्रमे, वंदी खामे तेजी || नविण ॥ २१ ॥ काउस्सग्ग मांहि तप चिं| तवी, वंदी करे पच्चरका जी ॥ देववंद गुणत्रीशमे, उत्तरकपणे ठाणजी ॥ नविण ॥ २२ ॥ यत्र मंगळपद कह्यो, सूत्रे अर्थ विचारजी ॥ स्तुति इक आदे सात ज्यां, श्लोकानो अधिकारजी ॥ जवियण ॥ २३ ॥ स्तव ते शक्रस्तव कह्यो, ए जिननो विधिवादजी ॥ चखविद संघ समाचरे, टाळे सयळ प्रमादजी ॥ नविण ॥ २४ ॥ बीजे त्रीजे जगुों, पंचम बठ्ठे अंगेजी ॥