SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जि० स० ॥ ९४ ॥ अत्तर सो स्तुति करी, ऊजा रही मन रंगेजी ॥ जवियण ॥ २५ ॥ बेसी शक्रस्तव जल्यो, सम्यग्दृष्टि एमजी ॥ इणी परे चैत्यवंदन करे, संघ सिद्धांतें जेमजी ॥ जवियण ॥ २६ ॥ विरत सुर जिन जामंलिये, राधे बिहु कालजी ॥ तसु निरमल मति किम हुवे, श्रावश्यकें - तिचारजी ॥ नविय ॥ २७ ॥ इक अरिहंत आराधतां, सीके सघळां काजजी ॥ बीजा देव रातां किम लदिये शिवराजजी ॥ नविय ॥ २८ ॥ पांचे पक्किमणे कला, त्रिणिगमा विस्तारजी ॥ पक्किमणे वार त्रिणि करे, सामायिक उच्चारजी ॥ नविय ॥ १ ॥ इक ठावी बीजो वली, पक्किमतां काउस्सग्गजी, त्रीजो इम पांचे करे, तसु पक्किममुं जुग्गजी ॥ नविय ॥ ३० ॥ ए विधि संक्षेपें जी, विस्तार श्रागम मजारजी ॥ चतुर हुशे ते जाणशे, करशे श्रुतअनुसारजी ॥ नविय ॥ ३१ ॥ गछाचरणा जे करे, करिय सद्दहा पर्वजी ॥ तसु मति विपरीत जाणवी, सूत्रे बोल्युं सर्वजी ॥ जवियण ॥ ३२ ॥ ॥कलश॥ इमजाणी श्रुतनी साखे सहा पर्व किरिया किजए ॥ डुल्न माणुस जनम पामी जि०स० ९४ ॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy