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निसा जे जाण बे, वचन वदे ते शुद्धजी॥ नवियण ॥७॥जीव जिहां हणिये नहीं, तिहां नहि दोष ॥९३॥
लगारजी ॥ अम्ह तित्थेसर श्म कहें, शणिपरें जिनमत सारजी ॥ नवियण ॥ ७॥ जिन विधिवादे जे कहें, सावद्यनो लवलेशजी ॥ ते मिथ्याती जाणवो, नवमांहि बहे कलेशजी ॥नवियण ॥ ए॥ धरम मिश्र धारंज जिहां, देखी रहे उदासजी॥त्रिकरण शुद्धे साधु ते, पामे सौख्य निवासजी॥ नवियण ॥ १०॥ उदयक तिथि जिणवरें कही, चंद सूरपन्नत्तिजी॥ पंचमंग शत बारमें, एहतणी वळि वृत्तिजी ॥ नवियण ॥ ११॥ दिन ऊगमते जे तिथि, समयादिक जब होयजी॥ अहोरात्री ते तेहनो, सबहे तिथिमांहे सोयजी॥ नवियण ॥ १२ ॥ बीय अंगे वीशमें, अध्ययन अर्थि चउमासिजी। पनम त्रिणि पाखी सवे, चउदशे हिये विमासिजी ॥ नवियण ॥ १३ ॥ पंचमंगि पनरम शतें, पूनम चमासि साखिजी॥ कल्पसूत्र वृत्तिये वळी, पाखी चनदशि दाखिजी ॥ नवियण ॥ १४॥ दशाश्रुतस्कंधे कही. चउदशि थरथे पाखीजी॥ पंचमे पजूसण नाखिर्ड, निशिथकल्पसूय साखिजी॥नधियण ॥ १५॥श्म चउमासु पूनमें, पाखी चनदशें होयजी॥
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