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________________ Draman. d D.COMIND.DOOD/ODuDinmAPPAPER | जय जिपमय सद्दहणे, वाराहग नाव. नापिणा दिई । ता तेण गुणाधारे, अहमवि थाराहगो- | होमि ॥ ए॥ सण नाण चरित, रयणत्तयः वंदणीय णमणीयं ॥ पढम पुगं सुयधम्म, तिश्य | गुणं होई सगनामे ॥ ए७ ॥ दुगधम्मे अवयरणं, तिपिण गुणाणं च सोवि दु दु ये॥णय पिछय | ववहारं, सद सद नूएण तेवि दुहा ॥ एए॥ गीय गुरु समीवे, उस्सग्गापवाय नेय मुणिकण ॥ वंदण नमसणाई, जहाविहुं कुणह नोनवा॥१०॥ जे सामाण सरूवं, वण्णवियं विङमाण जंदिउँ॥ तं वायमाण गुणियण, ममुवरि वेसं च मा वहसु ॥११॥ जं जं सञ्चासचं, वट्टर वत्थु सुहासुहं | सत्वं ॥ गिएह विणापरिका, तस्स विही का नवे विज्ञ ॥ १० ॥ आयरिया अण्णाई, उवादि | | जुत्ता च हव उज्जाया ॥ साहु हवई असाहु, पुनामि विह्मयं कस्स ॥ १०३ ॥ जय सदावि कु सदा, गुणा गुणणेव जाणए किंचि ॥ कस्स.णिवेयेएमि णायं, जश् नवई एरिसो संघो॥१०॥ सा- | हण सहाय रहिर्ज, कुणई कधं धम्म साहगो साहु ॥ साहण सहाय सरिसं, सिज्म कजं सुहासुहं सत्वं ॥ १०५ ॥ चिच्चा सढहढवायं, मयवायं माण मायबायं च ॥ जय श्छह गुणलाई, रिज | oamavaPR/amz/panse/pmgeaMDu MORA ८०॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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