SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ anemamaRIEVARTANDISetog/areaa सम्मत्त देस विरई, सब विरदस्स साहणं कुणई ॥ तिसुगणे सुवि मनिम, गुणी विमग्गाणु सारीवि ॥ ॥ जं तिय मलण्णयरं, गुणं सु लदिऊण दिढयरं धरई ॥ मूलगुणं उत्तरमवि, जयणं | जकिवणादत्वं ॥ ७ ॥ यरिय उवनाया, साहु सहाय चनविदो संघो ॥ उकिहा ति नंगा, || निय नियगणेसु जुंजिव्वा॥ए॥ दवाइ चननंगाणि, वियारियवाणि आदमीणं जेणय ममथ्य नावं || हवदिढं दोसपरिहरणं ए०॥ दूसम समय सहावे,अप्प गुणा दोस बहुयरा होई ॥ इदिमुणि ऊणय | नविया, गुणगहणं कुणह अत्तहिये॥१॥ दोसग्गहणे दोसं, गुणगहणे होश् अत्तगुणवुढी ।। श्य जाणे नोनवा, गुणगहणं दोस चयण वरं। ए॥ थायरिय उवलाया, साहु सिस्साय साहुणी सहा ।। अवमाणियाहु जेमे, श्रवराह खमंतु मे सव्वे ॥ ए३ ॥ णहु मेरा दोसो, णहु मे णिंदापयोश्रणं | | किंचि ॥ दुसम सहावं कहियं, नवियाणं जाणण णिमित्तं ॥ ए४ ॥ जं सामाण विसेस, रूवं न. पियं च समण संघस्स. ॥ अहमवि तेणय रूवे, वद्दामो कम्मजोएण ॥ ए५॥ तब जब नाणताण | समिई गुत्तीय समण धम्मं च ॥ सुह किरियाणुट्टाणं, गहु मे एकोवि पुण्ण गुणो ॥ ए६ ॥ कपODDENTDRDARB0/4DARADISUDDD/Ded amaava
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy