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________________ DGDPOADB DDNAB दीस बहुलाहु उस्समे समए ॥ तहवि सुसदायोवा. अवि दीसंति गुणगाही ॥७॥ अकवि | लस्वरूप हा || सम्मत्तधरा, वयपमिमा धारगा सुसीलावि ॥ साहुगुणे सुविरत्ता, सहा एयारिसा अधि॥ ७ ॥ | | ॥७९ | जिणपूया गुरुनत्ति, कुणई साहम्मियाण वडवं ॥ सगखित्ते धणववणं, जवणं विहि पंच परमेही | | ॥ ७ए ॥ गुरुजण गमणागमणे, पयठवणे साहु दिलणे चेव ॥ दव्वुडन्नावुलव, करणे अज्जा-| वि उज्जमा सदा ॥ ७० ॥ अजवि सुधम्मपरकी, समवयाराहु सदय सुवियारी ॥ सुहकरणी अणुरत्ता, अनधि एरिसा सहा ॥१॥ अजवि सुगुण सुरूवा, दोह वियारी सलज सुविणीया ॥ सुव्वयणा | गुणपरकी: गुणरागी एरिसा अधि॥२॥धम्मी धम्मसणेहि, धम्मसहाय धम्मउवएसी॥ धम्माणु रागरत्ता, अज्जवि सट्टाय धम्मिका ॥ ३॥चनविह धम्मपवत्तग. अवर पवत्तावणेवि जे कुशता ॥ गेहेविय वसमाणा, समण समाणा गिही अवि ॥ ४ ॥ जद्दवि उक्किटगुणा, न हुंति 1 ॥७९॥ दुसुमेण काल नावेण ॥ तहविय जहन मलिम, गुणा पवतंति संघेसु ॥५॥ सजण सरस सहावा है। गुणथुश् सीता अनिंदगा मिळा ॥ एए गुणा जहएणा, जस्सहवे तेजहण्ण गुणी ॥ ६ ॥ A APBEBAREVEAD//न्या NDARDPeo
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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