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संघ व मएएच ॥ साहु जावं मएइ, कलिकाले एरिसा सढा ॥ ६७ ॥ बहु शिंदर गणवासी बहु सिंदइ ढूंढमा जिपमा || बहु शिंदर जिपवयण, कलिकाले एरिसा सढा ॥ ६८ ॥ बहु जाइ सम्मत्तं, बहु षय बहु तत्तविरइ दबाइ ॥ गुरु देवाई न यापई, अप्पर मुणई सद्वृत्तं ॥ ६ए॥ बहु षमकाय सरूवं, मुबई बहु पंचइंदि विसयाणि ॥ श्रावस्सगं ण मुण, सद्वृत्तं तदवि मण्णेई ॥ ७० ॥ साहिं साग साहब, मुबई ज्ञेया ण मूढ बनप्पा ॥ खाया खलु अप्पाणं, मुबई एयरिसा सट्टा ॥ ७१ ॥ य शिष्य ववदारं, मुबई एय साहु सावगं धम्मं ॥ तविष वंदइ जइणो, कलिकाले एरिसा सढा ॥ ७२ ॥ जस्सुवएसंसुच्चा, जाणइ धम्मं च चच्चए अप्पा || मरणई तस्स कुलिंगी, काले खुकयग्घिणो सढ़ा ॥ ७३ ॥ इदि मम मणेसु विम्हय, अवगुण गणेष मुबइ अत्तदिशं ॥ नइ श्रदं समदिठी, डुसुमे एयारिसा सढा ॥ ७५ ॥ मण मणियं मएई, साहु साहु गुणागुणे धम्मे || जेबहु कुई परिस्का, ते मूढा हुंति कुल सढा ॥ ७५ ॥ संजइ श्रसंज ठेवा, गीयता इयर सील डुरसीला ॥ सव्व समाणं मध्ई, कलिकाले एरिसा सढा ॥ ७६ ॥ जह एरिसा कुसढ़ा,