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________________ amaAPTITMawaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa'. नावे सुणह चच्चेह ॥ १०६ ॥ कुणई कुमिल कुन्नावे, नणणं गुणणं च कहण सुषणं च ॥ पुषण | चचणयायी, सईपि निरम्यं तस्स ॥१०॥ तम्हा कुमिल कुलावं, चिच्चा घरिऊण हियय रिज नावं ॥ नईऊण लोय नावं, जिणधम्म कुणह लोलवा ॥१०॥ जे साक्वाद धम्म, उ जय नउत्तं न जा| पए मूढो ॥ एगंतं गही ऊणय, थावण उत्थावणं कुणई ॥ १० ॥ तं जिणधम्म विराग, नूदाखलु नमदिणंत संसारे ॥ तम्हा थाणपमाणं, कुणहय इजण मय वायं ॥१९॥ तम्हा परिकणं || खा, कत्तई देव धम्म गुरु गंथे ॥ सच्चेयरमिस्सेहव, गेयं हेयं जवाएयं ॥ १९९ ॥ सिरि नागपुरी नाम, कम तव गछे जुगप्पहाणोय ॥ सिरि पासचंदसूरि, सरपट्टे अहमे अछि ॥ ११॥ सिरि मि-|| चंदसूरी, सररचे दुसम समयगुणं ॥ मालारूवं सदगं, रश्य मुणि कम्मसिंहेण ॥ ११३ ॥ जो नवि ||७|| नब सहावे, पढदी गुणदी कुणोदि गुणगहणं ॥ गुणगहणे गुण लहणं, गुण लहणे सददि परमपयं ॥ ११४॥ इतिश्री महामहोपाध्याय मुनिश्री कर्मसिंहेन रचितं श्री कलिकाल स्वरूप कथनशतकं समाप्तम्।। rammavasavamwantbaneswanaanawanoos
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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