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________________ सुपरिचय, मवि बहुम कुलई ॥ २७ ॥ पुष जणरंजण कदमवि, सुदमकला दव प मित्तंपि ॥ धरणितले सुतयाते, न माइ व्यवरं च किं जणिमो ॥ २७ ॥ पाढग तिरकर अत्यं, काल सहावेण धर विवरीयं ॥ पावं व्यणं कवमं, एदे हे पवत्तएच्चिं ॥ २९ ॥ उवहि उवायं चिंत‍ पावद्वाणं च सेवएपिचं ॥ कायइ विसय कसायं, उवज्जाया एरिसा अजा ॥ ३० ॥ जद एरिस जवाया, काल सहात्रेण हुंति वियलतरा ॥ तवायपारियो मुणी, साहुणिचि इद्दिसा ऐया ॥ ३१ ॥ कुई जंतंमंतं, जेसजकम्मं च कुपर सऊणाइ ॥ कुलई बिमित्त नासण, साहुवि एरिसा ज ॥ ३२ ॥ सेव रायद्दारं पुणो पकखेण सेवए जवणं ॥ विहारइ गणिय कला, साहूवि एरिसा ज ॥ ३३ ॥ कोई कोऊदल, सामुद्दाई अएण सत्थेसु ॥ परिचय कुणए जो, ते साहू अज बदवो ॥ ३४ ॥ कामका विकहासु, कीमाकम्मेसु तप्परा बुद्धा ॥ कलद्गरा श्रइ मंत्री, कलिकाले साहु सधरा ॥ ३५ ॥ वायाला अश्माणी, बिंदग मायी परप्परदेशी ॥ पयपूया अनिवासी सुमेरासादु || ३६ || हिंग गेहे गेहे, वहा वहु जायणे दीणा ॥ जायइ कवद्दि
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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