________________
लिका
॥ अथ श्री कलिकाल स्वरूप कथन शतकम् ॥
कि०
स्वरूप
७५॥
D amorangwateraprapravasypA
पणमिय सिरि जिणवीर, तस्सुवएसो जहा सुए नणी ॥ तस्सणुसारेण महं, वोठामि | कलिजुग सरूवं ॥१॥ जे आयरिया वुत्ता, पणमायारं च पालण समत्था ॥ ते अहुणा नहु दीसई | दोसई विवरीय रूवधरा॥२॥जे आयरिश्रा वुत्ता, धम्मसुअपारगासुविहि जुत्ता ॥ ते मुकाहु अह|म्मा, आयरिया एरिसा अऊ ॥ ३ ॥ जे उबएसे रित्ता, तव विमुद्दा कवम जुत्त उयरत्नरा ॥ | माणी पायविमुक्का, आयरिया एरिसा अऊ ॥४॥जे गुरुनाया सिस्ता, अण्णमुणी चिवमिवाय
गा चेव ॥ पाढगपए विऊर, आयरिश्रा एरिसा अऊ ॥५॥कुटिल कुरूव कुवाया, कुजुत्तिजुत्ता | कुपरकपरककरा ॥ विषय कसाए निजणा, आयरिया एरिसा अज ॥ ६॥ अण्णाणी अण्णा, पमाय बहुलो असुद्ध जवएसी। मायीय अणायारी, गणव एवारिसा बहुला ॥ ७ ॥ रसजुत्ता
BADABADBravaza/Deewoooo@Homक
-
BENSO4RD/M/ADVAR
७५॥