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निहालचंद किन्ही निज मतिते पुनीत ब्रह्मवावनी ॥५१॥ हम दयालकै सऊन विशाल चित्त || | मेरी एक विनति प्रवान कर लीजियो, मेरी मति हीन तातें कीन्हो बालख्याल श्ह अपनीसुबुद्धि” सुधार तुम दीजियो।पौंनकै स्वन्नावतें प्रसिद्ध कीज्यो गैरौर पन्नग स्वन्नाव एक चित्तमैं सुणीजीयो, अलीके स्वन्नावतें सुगंध लीज्यो अरथकी हंसके स्वन्नावकै गुनकौं गहीजियो ॥ ५५ ॥ | इति श्री ब्रह्मबावनी संपूर्ण ॥
१ आ ब्रह्मबावनीनी ३ए मी गाथार्नु त्रिजु पद पागंतर रूपे आवी रीते ले “क्रिया के कलाप तब लागत विलाप सब बातम प्रबोध बिन जूले बहु कापटी"
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