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ब्रह्मबा
वि०बा०
बनी
VaasDD/RS/2010/
॥७४
RONDONBO
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परोक्ष के प्रमाणते प्रमाणी है, मुक्तिकी निशानी जाकौं मानी नविप्रानी करुनाके रस- || सानी सो अनादि जिनबानी है ॥ ४ ॥ शबद प्रमान ग्रंथ पंथमें प्रमान जिनबानी परमान परमानहमें गा३ हैं, म्यानमें प्रमान ध्येय ध्यानमें प्रमान मेय मानके प्रमान उनमानमें बतावें हैं। तत्वमैं प्रमान सब मतमें प्रमान गवचन प्रमान करि शिष्यकौं बुजावें हैं, सोहै आप श्रातमा अनादि अविनाशी ब्रह्म कै उमति नर ताकौ पार पावें हैं ॥ ४ए ॥ खगहुको पग कैसैं | व्योममें निकाले जग मीनहको मग क्युं पिलान्यो जात पानीमैं, सरकौं उद्योत अरु रतनकी | ज्योति जैसे पुष्पमैं सुगंध रहै कौन और गनीमैं ॥ त्युंही इह श्रातमा रहत कौन देश नेष | मेटत अंदेस मौ कहावै गुरुग्यानीमैं, पंमित बिचारतें विचार करि करिहारे कोउ ठहरात नाहि
ब्रह्मकी कहानीमैं ॥५०॥ संवत अढारसै अधिक एक कातीमास पख उजियारे तिथि द्वितिया | ||२|| सुहावनी, पुरमैं प्रसिद्ध मखसुदावाद बंगदेश जहां जैनधर्म दया पतितकौं पावनी ॥ पासचंद | 8॥ ७४॥
गह स्वध वाचक हरखचंद कीरति प्रसिद्ध जाकी साधु मन नावनी, ताके चरणारविंद पुन्यते ||
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