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अखय अमोल है॥२५॥ बिनवादी कहै जीव लिन लिन आवै जावै जलमै तरंग जैसें अंगमांहि आतमा, | दरबके सबसनेद कौन पावै शठ करै हवाद वाद गनै वातवातमां॥नही पहिचान शुद्ध ग्यानकी न है तातें मनके किलोलकौं कहतुहे त्रिधातमा, जैनमती कहै जीव ग्यानमयि है सदीव अमल अखंग जैसें जातिरूप जातमां ॥२६॥ जलमैं है थलमैं है अनिल अनल मैं है सबल निबलमैं समायकै रह्यो वही, ग्यानहु में ध्यान में निखिल निदानहुमैं वझे मतिमानमें प्रमानमैं कियो सही॥ | रूपमें रचा है अन रूपमें सचा है घट कोंन धोव चाहै जामें आप रूप है नही, साहिबकै | नोरे तूं तो ढुंढतहै औरैं और घटमें ढंढोरै तो घटमैंहै बतै अही ॥१७॥ ऊघमत फिरत अनाहक
अग्यानीजीव कोउ कहै आतमा है कोउ कहै नांही है, कोउ कहै व्यापक अव्यापक बतावै कोज कोउ | | कहै ईश्वरके ज्योतिहुकी मांहीहै ॥ कोउ शून्य गनै कोट पंचतत्व मानै तातें जैनी कहै जीव तो | सदीव ग्यान मांही है, चेतन खरूप है अखंमित अरूप है सुतत्वनिको नूप ऐसौ ब्रह्मघटमाहिद | ॥२॥ नांही रूप रंग अंग वचन प्रसंग संग अकल अन्नंग ढंग कहांलौं कहीजिये, नाही कबु
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