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________________ ब्रह्मवा बनी ७० वृद्ध बालक नदी कह्यो, न जज्यो अपार पारावारकौसो विसतार व मतधारिहूने पार वाको न लह्यौ ॥ २२ ॥ घटमैं है निकट प्रगट ब्रह्म तेरे तूं तो मोदकै अंधरे मांदि खोजत जहांनमैं, अपनेदि पास मृगमदकी सुवास मृग सुंघत फिरत घास जैसें रान रानमैं; तूं तो जम रह्यो गमिरह्यो वह नांदि कहूं तो में रमिरह्यो जैसैं पावक पाषाण मैं, दहिमांहि घीव जैसें देही मांदि जीव तैसैं देखत सदी ब्रह्मज्ञानी ब्रह्मग्यानमै ॥ २३ ॥ ग्यानदृष्टि वेदसौं नेद एह श्रातमा हैं यद्यपि है वेद पै तथापि एक कड़िये, जैसें तृण काठ घास इंधनसौं जिन्ह वन्दि दाइक स्वरूप करि एकै जांति लहियें ॥ तैसें देहधारी देह देह में अनेक जांति जयौ नाना क्रांति पै लेख लेख सहिये, तीनहू त्रिकालमांदि ग्यानतें विभिन्न नांदि आपनी शकति बांग परकी न गहियै ॥ २४ ॥ चंचल तरंग उठे पौनकै प्रसंग सेति अपने स्वभावही तैं नीर ज्यौं अमोल है, तैसें ग्यान चेतना स तम सुधिर सदा परकै प्रभाव सेती नाना कजोल है ॥ देव नर नारी पशु पंखी जलथलचारी पुन्य पाप सुख दुख करम किलोल है, मिटै परनाव शुद्ध आतम सुजाव यावे पावै निज संपदा जो ब्र०बा० e
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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