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________________ रीति विपरीत गढ़ी शुद्धताकौं बांकि दइ तातैं बुति मंद न‍ राजा चिदानंदकी, जम्यो जव बीच एक सासमैं सतर बेर जनम मरन करि सही दशा दंदकी || मोहकी मलिनतासौं दीनता नइ अनेक राह गिरासे जैसे घटै कला चंदकी, अनुभौ अन्यास शुद्ध आतमप्रकाश भयो तमकै मिटै| तैं कला प्रगटी दिनंदकी ॥ १३ ॥ लिख देख्यो शीख देख्यो शीखन शीखाइ देख्यो रह्यौ न परेखा कहुं वेबहुकातमा, ग्रंथ देखे पंथ देखे कुमतिकुपंथ देखे नगन निग्रंथ देखे मुनि श्रौ महातमा ॥ सिद्ध देखे सती देखे जोगी रु जती देखे लेखे नलेखे देखे पंमित द्विजातमा, गुनी देखे ग्यानी देखे तीरथ केदेखे ते सब देखे पै न देख्यो एक यातमा ॥ १४ ॥ लीन्दौ कहा जोग जो तौ जोगसौं न सूर्यो मन लोग के रिजायवेकों धूम्रपान गटकैं, को शीष धारे जटा कोज तो उखारै लटा कोज कनफटा को क्रियाही में खटकें ॥ कोउ तो संन्यासी मठवासी वनवासी कोट दोयकै उदासी परे तीरथकों जटकें, ब्रह्मीकौं चीन्यो नांदि मन वश कीन्हौ नांदी एते पर होत कहा | फटकै ॥ १५ ॥ एकही सिलोक पढौ पढौ क्यौं न कोटि ग्रंथ पंथदु कुपंथनिमैं जेती जेती कथा है, वेद
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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