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________________ ब्रह्मबा वनी ॥६॥ BED/assames/aavao/B000/ | चंद मुनि तिहुं लोकमांहि आतमप्रकाश सम फ़ेसरी न प्रकाशना ॥ए॥ उपजै न उपजतु विनसे न विनसतु श्रातमा अखंग ब्रहममको विकाशीहै, परजैके नेदसौं नया अनेक वेद तोह अव्यतामै एक एह अज अविनाशी है। वरनादि वीसन्नेद नाखै प्रजु पुग्गल के तिन्हौइतें जिन्न | निज सत्ताको उपासी है, मनमैं न गही जाय वानीसौं न कही जाय ऐसी शुद्ध आतमाकी ज्योति | | परगासी है ॥ १०॥ ऊरध सपत राज सात राज अधोलोक तीनसै तयालराज तिरबै प्रमानिये, । | तामैं खट दरब सरब नव तत्वन्नेद ऐसे नरे जैसे घट घृतपूर जानिये ॥ ताहीकौं कहत गेय गेय | परमान ग्यान ग्यान परमान शुद्ध आतमा बखानिये, व्यापित अखिल ब्रहमममैं अखंम ज्योति , ताते ह ातमा सरब गति मानिये ॥१॥ अहैि अपार अधिकार तेरे निकटही प्रगटै ऊपट पट खुलै जो अग्यानके, तेरेहि नंमारमांहि नरे ग्यानरतन सो जतनके कीन्हे बिना नए वश आनके ॥ तेरी प्रजुता पहिचानवेकौं मुनिजन होकैं मगन अधिकारी नये ध्यानके, Inten अहो प्रजु चेतन अग्यानताके नाव त्याग आपुकौं सन्नारौ ब्रम टारी दरम्यानके ॥ १५ ॥ Datee900DD/D/Deap/oppea B/6ED/ oDan
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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