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________________ B.D ब्रह्मवा बनी वा. /AIANDEDoDAGrammarATORIA/AMMEDIATANTRA | निरवेद पढौ औरहु कितेब पढौ पोथीहु पुराननमैं नाख्यो जेसे जथा है। गुरु कहै ग्यानी कहै बमे | मतिमानी कहै ब्रह्महीकै जानवैकों श्रुतसिंधु मथाहै, आपा पर पहिचान्यो सब तंत विरतंत || जान्यो और जानवैकी रही कौंन तथा है ॥ १६ ॥ एही प्रनु आतमा अलख अविनाशी ब्रह्म | कर्मके नरमवश कैसें रूप है रह्यो, रच्यो परन्नाव पै सुनावको न लीन्हो शोध श्रातम प्रबोध विनु | जमताकौं वैरह्यो; मानकी मगनतासौं क्रोधकीजगनतासौं लोनको लगनतासौं मोहनिंद रह्यो, | सुगुरु चितावै जिनबानी सममावै तब थापा निधि पावै जो अनादिहीसौं ख्वैरह्यो ॥ १७ ॥ उह | जो ब्रहम जाकौं वेदमती ब्रह्ममानै न्यायके पढ़या माने करता करमकौं, बोध कहै बुद्ध अरु सबसौं करे | | विरुद्ध जैनी कहैं शुद्ध यहै धरता धरमकौं; एते मतवारे मतवारे मतवारे मोलै करें पछपात पाट खुल्यो, |न नरमको, वह तो है एक ए अनेक नांति नांति कहै विना ब्रांति मिटे पैमो पावै क्युं परमको, | ॥ १७ ॥ और नही जान्यौ कहूं अंत न वखान्यौ काहु ऐसो न प्रमान्यो कौन रूप कोन रंग है, काहु नही देख्यो कहूं चित्तमें न रेख्यो ताते आपते परेखौ को बतावै कौन ढंग है। BaDDODanuwaoDGDSD/ED/ca ॥९॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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