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॥ अथ श्रीब्रह्मबावनी॥
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( एकत्रिसा सवैया छंद.) कार आप परमेश्वर परमज्योति अगम अगोचर अलख सुरूप गायो है, उव्यतामै एक पे || अनेक नेद परजैमैं जाको जसवास मत्त बहुनमैं बायो है ॥ त्रिगुन त्रिकाल नेव तानु लोक तीनु देव अष्ट सिद्धि नवो निद्धिदायक कहायो है, अक्षरके रूपमैं स्वरूप नूअलोकहुको ऐसो कार | हरखचंदमुनि ध्यायो है ॥१॥ नमत सुरासुर खगेंड धरणे जाकों मुनिनके वृंद ध्येयरूप करि | ध्यायो है, जैनी कहैं जिन शिवमति शिवरूप मानै वेदपाठी ब्रह्म बोध बोधरूप गायो है ॥ कोउ | कहै अलख असाह यौं अथाह रूप कार ऐसो जिन जैसोइ बतायो है, वर्ननको रुंद जा | की महिमा अमंद ताहि वंदत हरखचंद सब सुख पायो है ॥२॥ मत्तहुमैं तत्तहुमैं जोगकी है| जुगतिहुमैं जुगति मुगतिहुमैं जाको विसतार है, वेदमें कितवमैं अवेदहुके नेदमैं सुथापना || |
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