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अस्वा० सित्तरी
अ०सि०
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॥३०॥ श्म शारीरिक पंचमी, असमा ए जाणि ॥ श्री पार्श्वचंड हरखे नणे, सांजलि प्रवचन वाणि॥१॥ (कलश) शणिपरि निजुत्ती बहु विह जुत्ति जोश्यावश्यक तणिय ॥गणंगिं चंगे जाणि || प्रसंगें संखेपे ते में नणिय ॥ सांजलि ए वाणि सगुणज प्राणी श्रुत श्राशायण परिहर ए॥ ते | नहीय विराधक सहीय थाराधक नवसायर हेलें तर ए ॥ २ ॥ ॥ इति श्री नागपुरीय वृहत्तपागछाधिराज युगप्रधान श्री पार्श्वचन्मसूरि विरचिता
___ अस्वाध्याये द्विसप्ततिका संपूर्णा ॥
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१ आ प्रकरणमां बनती महेनते सुद्धि करवामां आवेली छे, उतां पण तथाविध मुद्ध पुस्तक न मलवायी केटलीक | गाथाओमा रु.य रहे छे, माटे जेमनी पासे आ शुद्ध पुस्तक होय अने ते अमने लखी जणावशे तो बीजी आवृत्ति वखते उपयोगी थइ पडशे.
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