________________
चार लोगस्सनो शुद्ध जे इम करे, सूत्र आशातना इणि परि परिहरे ॥ ६४ ॥ प्रेतवनि नरतणा || अस्थि जे जे दह्या, ततखिणे मेघजलवृष्टिगुं ते वह्या ॥ तिह असमाश्य सर्वथा पें नही, अन्यथा | वरस दश कुन्नि सूझ नहीं ॥ ६५ ॥ जे बिलाम तणी जाति जीव जीवतो, ग्रहिय न जाय तो न | हिय असूझतो ॥ करत तसु घात जे कोश्अवयव पमे, पहर अम सूत्र सज्जायने ते नमे ॥ ६६ ॥ साठ करमांहि तिर्यंच अवयव तथा, हाथ शत मांहि नर अवयव संकथा ॥ करे असमाय विचि से रजें बिटु दिसें, होय तो शुद्ध सज्माय आगम कसें ॥६७ ॥ नारिने ऋतुसमय मास मास |
सुण्यो, वासर त्रिणि असमाय कारण गिरायो । तेहथी अधिक असमाय ओहमावणी, करिय का- | M उसग्ग तो शुद्धि थाये घणी ॥ ६ ॥
Bawanpramavasaww/OBawasaaraa
and stuecettbreveneen
आजा मंगी स्वाति लगी, गाजवीज जो होय ॥ तो असमाइ नहु कही, हिये विमास जोय | ॥ ६॥ शेषकाक्षि तारा तणि, दंसणि सूके काल ॥ पुत्र प्रसवि दिन सत्न गिणी, पुत्रि श्रम दिन टाल