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________________ अस्वा० सितरी ॥ ६५ ॥ विमासि सही, एह विणुं सूत्र सक्काय नलिवो नही || ११ || होय परचक्रनय तह नवि उपशमे, तां असाय कर पिएं अतिक्रमे ॥ आपण जिवरती जणे त्रिभुवन धणी, तासु परंपरे यज लगी ते गिणी ॥ ५८ ॥ नगर नर मोटिको मरण पामे जदा, इग अहोरत असज्जाय हुए तदा ॥ वसतिथी सात घरमांहि दीपत नरें, विहमिये पहर श्रम सूत्र नदु उच्चरे ॥ ५५ ॥ पाधरा पुरुषने मरणि शब जां पड्यो, रहे तां होइ समाइ चिते चड्यो | पड्यो तिरि रुधिर तह फूटए अंकए, गायने प्रसवि जर धरणि जव गए ॥ ६०॥ एटले जाम तिय सूत्र नहु सूकए, नणिवए गुणिवए पदं नडु बूए ॥ विवुध जन जाणि ए दूषण टालए, सुमति जल डुरितमलपक पखाल ॥ ६१ ॥ नरत शोणिते उद्धर्ये इहां वली, इक अहोरत असाय टकली ॥ मेघनी वृष्टिते धोवराणो जदा, ततखिणे टले असज्जाश्य ते तदा ॥ ६२ ॥ पाउलि निशि पमयो उद्धर्यो ऊगते, सूरि सूके तदा चिरा बलि जागतें ॥ दंत देखि पमयो हाथ सो बाहिरें, परिवव्ये शुद्ध नहु दोष श्रुत वागरें ॥ ६३ ॥ अव जाणि पमयो शोधतां नदु लह्यो, दंत उदडावणी का सग्ग तिह को || अ० सि० ६५॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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