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सत्ती
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थागिलो, अहनिशि इम निरतो लह्यो ए॥४०॥ कहिये अवर, प्रकार गयणि सवादल, दिवस || ग्रहण दीसे नही ए। श्म जाणे अणगार, बाज अमावश , तिणि ग्रहण हुशे सही ए ॥ निर्मल || अंबर दिछ, अंस्तमिसंग्रह, तिणि निशि निशि दिन थागिलो ए। पहर सोलनी दिहि, आगमि जिनवर, असमाय ए संगिलोए॥४९॥ बारह पहर जघन, ते किम संनलो दिनकर, बाथमियो ग्रह्यो ए । तिहि निशि टाले धन्य, मुनिजन सज्काय, अहोरात्र बीजे लह्यो ए ॥ बारह पहर श्म || जाणि, ॥ जे पुण दिवसि, ग्रह्यो दिवसि मूक्यो वली ए, । ग्रहण काल मन आणि, वेला ||| श्रावती, तां लगी सज्माई टली ए ॥५०॥ वितर कृत गुंजार, नादिरं ऊपने, आठ प्रहर असज्जाश्या ए। दिवसि संध्या चारि, उदे हिबे पहरे, अस्तमनिएं मध्यराश्या ए॥ तिणि| वेला असजाय, नणिवो वांचवो, सूत्रतणो सूके नही ए। कातिग ने अषाढ, पमिकमि चउमासी, | है | पमिवा लगि जाणो सही ए ॥५१॥ श्रसका दिन बीज, सूझे सजाय, एहनो दोष अडे घणो ए। प्रवचनि वार्यो काल, नणतां प्रवचन, मुनिने बल हु सुर तणो ए ॥ जे हुए साधु प्रमत्त, तासु
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॥६४।