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________________ इम जाणे होशे सही, ग्रहण ति वादलमांहि ॥ नहु दीवो निशि बेहके, दीगे प्रह्मो प्रवादि ॥ ४२ ॥ | श्राथमतो इम रयणिना, टाल्या पदर चियार ॥ वलि घ्यावंता दिवस निशि, इम बारह अवधार ॥ ४३ ॥ यवसापि पूनिमतणे, चंदग्रहण जे दीड || पदर आठ एपीपरें, श्रुति जघन्य निर्दिष्ठ ॥ ४४ ॥ रयणि मध्ये जे ग्रह्मो, वलि मध्यें मूकाय ॥ तो जेती निशि थाकतो, ते असफाई थाय ॥ ४५ ॥ उतकृष्टि मजिम जद्दन, एवं त्रिणी प्रकार ॥ चंद ग्रहणना एजण्या, दिव रविग्रह्ण विचार ॥४६॥ ( ढाळ. देशी आदिसरजीनी विनतिनी ) दिव रविग्रहण विचार, कहिशुं जिपि परें, सज्जाइ दुइ एह तणीए । राहु केतु ग्रहवार, करतां यावरे, मंगल रविनो ते जणी ए ॥ लोक कहें शशि सूर, राहु गले इह, एह वचन मिथ्या कहे ए । श्री जिन केवलसूर, छांगें पंचमि, बारमे शतकें संग्रहे ए ॥ ४७ ॥ बट्टे उद्देशे इम, बोल्यो विस्तर, ग्रहण तो तिढ़ जावो ए। तो सफाइ केम, केवल कारण, उतपातिक मन ध्याणिवो ए ॥ सोल पहर उत्कृष्ट, ए असाध्य, उदयावसरें रवि ग्रह्मो ए । अस्तमि पु तिम दृष्ट, ते निशि
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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