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________________ aewapraanuass raNavanasamaanavamasomaaaaaaaaaaaaaner (ढाळ. छप्पय समान) ते असलाइ बिहुअ नेदि आगममति जाणो, जेह विवेकी लोक तेह ए हियमे थाणो॥ आपण यी ऊग्जे जेह ते थायसमुत्थ, परसमुत्थ जे परहथको गिणि श्म परमत्य ॥ १६ ॥ परसमुस्यना नेद पंथ श्क संयमघातक, धुअरि प्रमुख दुतिय नेद कहिये उतपातिक ॥ रजरुधिरा|दिक वृष्टि नेद हिव त्रीय सदिवा, करे नगर घर गयणि विविध सुर जे गंधवा ॥ १७ ॥ चोथो व्युग्रह नेद ए कहिये संग्राम, शारीरिक नर तिरिय अंग पुजलनो गम ॥ ए बोल्यो |पंचमो नेद हिव त्रीयनि, कहिशुं लहिणुं जेह सुगुरुवाणीनी जुगति ॥ १७ ॥ संयमघातक | | प्रथम नेद धुंधरि शिवाले, जां लगि हुइ तां सीम साधु संनाषण टाले ॥ अंग संकोची वस्त्र सहित ढांकी एकांति, बेसे किरिया किंपि करे नहु माणिस ब्रांति ॥ १५ ॥ तो नणवानुं क| हण किसुं बीजी जे चारि, असज्मा तिह सूत्र नणण तसु गुणण निवारि ॥ किरिया करवी स-| हुअ अवर हिव बीजी नणिये, संयमघातक तणो नेद शणि परि ए सुणिये ॥ २० ॥ राती बाया | BANDARDaasaarsbanD04006s
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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