SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाखी ॥५६॥ Daate/Pm/aa/aWAND03/ निरतिचार बारह व्रतधार ॥ तण थाप्यो पोसहमावसे, वीरनिर्वाण थया तिण मिसें ॥३१॥ | हिव गया जिन नावउद्योत, करीस्युं इहां अव्यन्योत ॥ दीवा कहतां श्रुति नहु मिले, || ||० सू० श्रावक श्राश्रव ढुंती टले ॥ ३५॥ थाप्यानो वली स्युं थापिये, कीधानो स्युं करी आपीये ॥ हुँतो पोसह पाखी नणी, तो थापे स्युं गणना धणी ॥ ३३ ॥ उदिढे कल्याणक सर्व, पूनम चोमासानो पर्व ॥ श्ण कारण पाखी चउदसे, जाणी म पमिश मतने वशे ॥ ३४॥ जलधि वृद्धि | नागादिक नत्ति, शेलग जतणी बहु सत्ति ॥ तिहोद्दिक श्रमावस कही, लौकिक लोकोत्तर श्क | नही ॥ ३५ ॥ पंचमी पोसह संवधरी, केम करे श्रावक संवरी ॥ चिहुं तिथि अधिक पर्व न | होय, चतुर चेत चित्त चिंती जोय ॥ ३६ ॥ अनिनिवेस नवियण परिहरो, आगम ऊपर श्रादर | करो ॥ पाखी चौदस दिन सद्दहो, श्री पार्श्वचंडसूरि सुख लहो ॥ ३७॥ ॥५६॥ NDAEDasasaraSoucopaDVANDANDAPOON D/ / aun
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy