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________________ PORANDERADIOSIO/mo/S/Batomaa करतो चिहुँनें गमें बार, पोसह त्रिण नंदमणियार ॥ ॥ तिण कारण ए नहु विधिवाद, श्ण दिवस परिहरि प्रमाद॥कीधा करतां पोसह थाय, सह यथास्थित चरित कहाय ॥२३॥ पोसह करवानी विधि जाण, काल ते सघला दीह वखाण ॥ उत्तरमयण नएयो पंचमे, जिनवरवचन | कवण अतिक्रमे ॥ २४ ॥ अरिहंत तणा महा कल्याण, दिदा ज्ञान अने निर्वाण ॥ ए उचित | पोसह अधिकार, पूनम त्रीहुँ चोमासे सार ॥ २५॥ सूत्रअर्थ जगमांहि अदोन्न, चौथे अंगे | दीधो थोन॥ सूयगमांगने अर्थे जोश, श्रुत मिलतो माने सहु को॥२६॥ नव पूनम बार अमा-| | वसी, पाखी बुद्धे नहु मन वसी॥ण कारण पाखी चउदसे, जाणी जोश कसी आगम कसे ॥२७॥ | पर्युषणाथ सित्तरी दीस, चौमासी पमिकमण जगीस ॥पने प्रथम सित्तरि पंचास, चोथे अंगणह | प्रकाश ॥ २७ ॥ चोथ करते एक अधिको थाय, जिणवर तणी बाण लोपाय॥ एक दिवस तिण | पालो कर्यो, पाखी नाम तिहां उच्चर्यो ॥२५॥कल्पसूत्रनो जेहले अत्थ, तेह थकी जाणो परमच्य | ॥ संनल वली दसासुयख्खंध, वर्धमान जिनवर संबंध ॥ ३०॥ मल लच्छगण, राय अढार, poempow/prGo/G/oceapoe/0GBaapaal
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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