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________________ ॥ चप्रथ सज्जाइ विचार. ॥ साइ क्यारे क्यारे ने क्या क्यां सूधी लागे बेतेन विधिनीचे मुजब बे:आकाशनी अंदरथी ज्यां लगी सूक्ष्म ( जीणी) रज पड्या करती होय त्यां लगी साइ गणाय बे. तथा जेटला वखत लगी घुमस गर्या करतो होय त्यां लगी सज्जार गणाय . धुमस गरवाथी सघली जमीन छप्पकाय ( पाणीना जीव ) मय थइ रहे बे, जेथी ते समय पंचमहाव्रतधारी साधु उपाश्रयनी अंदर कांबलीव सघलां अंग उपांग छाने म्हों वगेरे ढांकी तथा अंगोपांग इलाव्या विना बेसी रहे छाने ज्यारे धुमस गरतो बंध पदे त्यारे तमाम क्रिया करवी, जेथी जीवदया सचवाय बे. तथा याकाशमां देवतानुं करेल गांधर्वनगर | देखाय, तेमज उल्कापात ( तारानुं खरखुं - वीजलीनुं परुवुं, वगेरे उपद्रवीय कारण ) याय, | अथवा उल्का पमतां तेजमय रेषा छाने अजुवालुं देखाय बे ते, तथा कणग एटले जेना परुवा
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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