SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ance/aNDausamdavnDGAODamana | संवष्ठर हुँत्ती दस दीह, किम हुइ पाखी जो निरीह ॥ अष्टिराग जे नव मुंकस्ये, सत्य वचन ते जन चूकस्ये ॥५॥ प्रगट नाम जिन आगम लहो, दिन गणवा किण कारण कहो ॥ पर्व जा. णी पोसह पालिये, दिन गणवानो ब्रम टालीये ॥६॥ दिन गणतां आवे चउदसी, मुख कहिये | | पुनम अमावसी ॥ प्रगट मृषा ए लागे सही, करिये अवर अनेरो कही ॥७॥ जिण तिथिमाहिं | सूर उगमे, तेहज दिन अहनिशि संक्रमे ॥ उदयिक तिथि ते करो प्रमाण, मूल सूत्र ने एहनो गण ॥७॥ चंद सूरपन्नत्ति उवंग, नगव नामे पंचम अंग ॥ पमिकमणा वेला डे जिहां, सूत्र साख विणु कहिये किहां ॥ ए ॥ आंतो परक नणि पूनमे, पाखी पमिकमणो अम्हगमे ॥ एम | कहे ते न लहे सही, अंतो कहेतां अंतज नहीं ॥ १० ॥ मध्यतणो इह जाणो अत्थ, गुरु पूडी जाणो परमस्थ ॥ श्रृत नाखे माणिस संदेह, अंतो म कहि पक्षनो बेह॥ ११॥ अंतो जे श्राव्यो अवसाण, तत्ते एक मात्र तो जाण ॥ वयण विन्नत्ति होय सत्तमी, एक वचन जाणे संजमी॥१२॥ मात्र सहित कानो ने जिहां, वयण विन्नत्ति कांइ नहु तिहां॥ शब्दशास्त्र अध्यय पद एह, अर्थ | NDOODarubaaoraneDravavaaorael/ DAREDICDA D
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy