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दुसमकाल अतिसय हीण ॥ कर्मयोग नरतें अवतों, बहुमत देखी संशय नर्यो ॥ ३ ॥ ते संशयनो नंजणहार, एक अरिहंतज जगदाधार ॥३॥ हिवमा तेहने विरहे करी, असंयति पूजा विस्तरी॥४॥ मामा थया वरस सय सात, विरला जाणे प्रवचन वात ॥ कीधा कल्पित ग्रंथ अनेक, प्रवचन प्रकरण नाषे एक ॥ ५॥ श्रीश्रुत ढांकी मूक्यो पूर, प्रकरण कहे उगमते
सूर ॥ अव्यत देव गुरु धर्म कह्या, नोळे नावतणे ब्रमे ग्रह्या ॥ ६॥ एक गमे चोरासी थया, || मांहो मांहे सहु जुजूवा ॥ निज निज चैत्य संघ मन वस्यो, एह किम लाने सासन क- | || स्यो ॥ ७॥ पमियो लोक गामरि प्रवाह, राशिबद्ध जिम ताएयो जाय ॥ परदरशन जे दी|गे बहु, नाम फेरि ते मंगयो सहु ॥ ॥ एक कहे प्रतिमा एकली, घर पूजंता न हूवे नलीम-| |लि नेमि श्रीवीर जिणंद, जिणदी हुवे परमाणंद ॥ ए ॥ तेहनी प्रतिमा घर नाणियें, श्म || || कहेतां किम गुरु जाणीयें ॥ एक कहे स्त्री पूजे नहीं, दोवर पूजी श्रागमे कही ॥ १० ॥ एक जैन जोमावा गणे, लान हानि जिन पूज्ये नणे ॥ करे प्रतिष्टा आपणे हाथ, करे जात्र
DIRDaDAINIVERVavenagmaternm/IABADASuvagava
14॥५२॥