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________________ avativND/ODE /40 | जळनी जइ साथ ॥ ११ ॥ मुखे जिन प्रतिमा पूजा कही, तेह मुखे वळी बोले नहीं ॥ माहरी ||| |मात अने वांझणी, एह वात जेणे साची गणी ॥ १२ ॥ बोले निज निज गुरु अवदात, बह | कायनो जिहां घात॥एक कहे वरसाव्यो मेह, रोग रहित कीधो निज देह ॥१३॥ नोंय उपर थाण्या श्री पास, तो तेहनी तेणे पूरी श्रास ॥ एहवा वोल अनाहत कहे, मुग्ध लोक कांश नवि. लहे ॥ १४ ॥ आराधि एके चामुंग, तेणे जे कीधो पाप प्रचंम ॥ तेह वात तो में न कहाय, नोळाना तेहज गुरु थाय ॥ १५ ॥ नदीमांही पेसी साधियो, बलि बाकुल सुर आराधियो॥ जीव तणी हिंसा नव गणे, तेहने पण गुरु गुरु मुख नणे ॥१६॥ एक कहे बांधी वीजली, अमावासनी पूनम करी ॥ वम उपामी चलाव्यो साथ, जिन आशिस दिये निज हाथ ॥ १७ ॥ श्म १॥ तिथ्योगाली पयन्ना मध्ये ॥ हो हिंतिय पासंडा, मंतख्खरकुहग संपउत्ताय ॥ मंडल मुद्दा जोगा, दंस उच्चाडण परायददं ॥ १॥ ते हिं मुसिज्जमाणो, लोगो सच्छंद रइय कन्वेहिं ॥ अवमग्गिय सम्भावो, जाओ अलिभोय पलिओय ॥२॥ हो हिं ति साहुणो बिय, सपख्ख निरावरुख नियाणियं ॥ समण गुण मुक्क जोगी, के.ई संसार च्छेतारो॥३॥ हिति हीति गुरुकुलवासो, मंदाय मतीय समण धम्ममि ॥ एयंतं संपत्तं, बहु मुंडे अप्प समणेय ॥४॥ / क क /d / D/arter
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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