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________________ सरिसा मिलेए; प्रकरणु ए जे जिनवाण ते आगम जामलि तुलए ॥ ३४॥ चउदह ए पूरवधार दस पूरवधर जे कह्याए, तिह नही ए कोई विकार केवळी जिम ते उच्चाए ॥ दसथकी ए पूरव उण तेह विसे नजना कहीए, किमकहु ए नाण विहूण श्म ने श्रुत नाख्यु सहिए ॥ ३५ ॥ | (कलश) इणि परे सुविशाले पंचम काले जेआगमगणि उद्धरिय, पुस्तक लिखिराख्या जिनवर ना | ख्या नवियण हितकारण करिय ॥ तसु नाम पमाणं गणि पहाणं बीजकजोइ स्मृति नणिय, || |ए चिहुंवर बंदे मन आणंदे पार्श्वचं सूरि दे जणिय ॥ ३६॥ +* ॥ अथ श्री गुरु त्रीशी चोपाइ छंद. ॥ रिपन्न प्रमुख जिनवर चोवीस, विहरमान तिर्थकर वीस ॥ विचरे दुन्नि कोमी केवली, || || प्रह उठी वंदो मन रली ॥१॥ साधु शिरोमणि विसहस कोमि, ते नितु प्रणमो बे करजोनि ॥ | B| कर्मभूमिका पनर मांह, जघन्य पदे बोख्या जगनाह ॥२॥ तसु पयकमल अमर जिम लीण, ||४|| vaa/APRINTERVaa avarGAPURVAPURamaARYAVARANE Navamarawasanwomaammarwarrantee -
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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