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आगम
छत्रीशी
॥५१॥
॥ ढाळ चोथी. स्वामिओए वीरजिणंद पुनिमचंद जिम उलसिय- एराग ॥
सय ए पनर (०१५) निशीथ, वीस (२०) उद्देसा सवि मीलीए ॥ शीखवे ए सुगुरु निशीथं सीस उत्तम मन खटकलीए ॥ त्रितरी ए अधिक सत चार (४७३) वृहत् कल्पे उदेस बद, बयें ए ( ६०० ) श्री ववदार दस उद्देसा गुण गुहिर ॥ ३१ ॥ श्रुतदसा ए अढारसय त्रीस (१०३०) जिए मणिया दस अयण, अगियारसें ए उवरि तेत्रीस (१९३३) पंचकल्पे बहुगुणरय
॥ बट्टो ए महानिशीथ ( ४५००) च्यार सदस्स सय पंचहिय, एटलो ए जेहनो ग्रंथ एकहत्तरी उद्देस सहि ||३२|| एहनो ए जे परमथ्य ारतें सुद्गुरु कहे ए, तेदनो ए जाव गीयथ्य निरतो गुणनिधि गुरु लए ॥ उद्धर्यो ए पंचमकाळ बहुअ आचारजें इम कह्योए, नहु मिले एतसु अंतराल बंयि मिलतो संग्रह्योए ॥ ३३ ॥ सातसें ( 900 ) ए नंदीविस्तार इक उणा उगणीससय, एटलो (१००) ए अनुयोगद्वार बहु पन्नाश्रुत जणीय ॥ ते सहु ए मुज प्रमाण जे आगम
१ रात्रिमां ४ मध्यरात्रिमां
आ०छ०
।।५१ ॥