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________________ आगम आ०० छत्रीशी ।। ४९ VaiDRDOcead/DBAPUmar/ROVIDADAMODADI | अनंत जण पहुंता नवपार ॥ वनि अनंत मुक्ति पहुचशे, सब कर्मनो बल वंचशे ॥ ७॥ हि-| वमा जे पहुंचे इण काल, ते पण आगम मत प्रतिपाल ॥ थोमे बहु बहु सुं नाखिये, ऋण कारण आगम राखिए ॥७॥ बहु आगम विवित्तियें गया, जे जे ते पण थोमां थयां॥ एटला पण जे किम रहे, तो जन सूधो मारग लहे.॥ए॥ श्म लिखि श्रुत बह जयणा करी, कर्यो काज तीरथ उधरी ॥ देवढिगणि जयो गुणवंत, क्षमाश्रमण वंषु नगवंत ॥ १०॥ पहेलु श्री आवश्यक नपुं, बह अध्ययने गुण संथुगुं ॥ (१२५) पंचवीस अधिको शत एक, ग्रंथमान जाणे सविवेक ॥ १॥ दस अध्ययन पुन्नी चूलिका, पाप रोग वारण मूलिका ॥ दसवैकालिक श्रुत (Fav) सातसें, तसु नामे मुज मन जबसे ॥ १५॥ ॥ ढाळ बीजी ॥ गौतम स्वामीना रासनी, वीर जिणेसर चरणकमल कमला कय वासो, एराग ।। उत्तराध्ययने सहसपुन्नि (२०००) अध्ययन(३६)बत्रीस,तासु नाम गुण मंत्र जिमसमरूं निसदीस॥ आचारंगे (२५)पंचवीस अध्ययन संन्नार, बिह खंधे उद्देस () असी वली पंच विचारूं ॥१३॥ सत्तब Deoroop/apraooooooar/w MAD/Becadevase १०
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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